लोचन मानत नाहिंन बोल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


लोचन मानत नाहिंन बोल।
ऐसे रहत स्याम के आगै, मनु है लीन्हे मोल।।
इत आवत दै जात दिखाई, ज्यौ भौरा चकडोर।
उततै सूत्र न टारत कतहूँ, मोसौ मानत कोर।।
नीके रहे सदा मेरै बस, जाइ भए ह्वाँ जोर।
मोहन सिर मोहिनी लगाई, जब चितए उन ओर।।
अब-मिलि गए स्याम मनमाने, निसि बासर इक ठौर।
'सूर' स्याम के चोर कहावत, राखे है करि गौर।।2381।।

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