लोचन भए अतिही ढीठ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


लोचन भए अतिही ढीठ।
रहत हैं हरि संग निसि दिन, अतिहिं नबल अहीठ।।
वदत काहूँ नहीं निधरक, निदरि मोहिं न गनत।
बार बार बुझाइ हारी, भौह मोपर तनत।।
ज्यौ सुभट रन देखि टरत न, लरत खेत प्रचारि।
'सूर' छवि सन्मुखहिं धावत, निमिष अत्रनि डारि।।2287।।

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