लै चलि ऊधौ अपनै देस।
मदनगुपाल मिलन मन उमह्यौ, कौन बसै ह्याँ जदपि सुदेस।।
वह मूरति मो हृदै बसति है, मुरलि अधरपुट कुंतल केस।
कुंडल लोल तिलक मृगमद रुचि, गावत नृत्यत नटवर बेस।।
कहा करौ मोपै रह्यौ न जाइ छिन, सब सुखदायक बसत बिदेस।
‘सूरज’ स्याम मिलन कब ह्वैहैं, दूरि गमन ब्रजनाथ नरेस।।3819।।