लीलामय, लीला, लीला के दर्शक -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा कृष्ण जन्म महोत्सव एवं जय-गान

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राग भीमपलासी - ताल कहरवा


लीलामय, लीला, लीला के दर्शक, दिव्य सच्चिदानन्द।
अखिल प्रेम-रससिन्धु, प्रेमघनमूर्ति, प्रेम-वितरक स्वच्छन्द॥
विविध अचिन्त्यानन्त विरोधी गुणधर्माश्रयरूप महान।
प्रकट हु‌ए प्रभु कारागृह में कृष्ण अतुल ऐश्वर्य निधान॥
साधुजनों का परित्राण, अति दुष्ट का करने निस्तार।
धर्मस्थापन-हेतु स्वयं प्रभु ने यह लिया दिव्य अवतार॥
हरने को निज प्रेमी विरही-जन का घोर विरह-संताप।
प्रेमधर्म-संस्थापनार्थ शुचि इच्छामय प्रगटे प्रभु आप॥
भाद्र, असित अष्टमी, अजनजन्मर्क्ष रोहिणी शुभ नक्षत्र।
मध्यरात्रि, बुधवार, छा गयी प्रभा सुखद अनुपम सर्वत्र॥
हु‌आ सुशोभन काल निरतिशय सर्व शुभगुणों से संयुक्त।
ग्रह-तारे-नक्षत्र हो उठे सभी तुरंत सौम्यतायुक्त॥
हुर्ईं प्रसन्न दिशा‌एँ सारी, तारे नभ छाये चहुँ ओर।
नगर-ग्राम-व्रज हु‌ए धरणि के आकर मंगलमय बेछोर॥
सरिता हु‌ई सुनिर्मल-सलिला, निशि सर विकसे कंञ्ज अपार।
लदे वृक्ष पुष्पों से, पिक-‌अलि करने लगे चहक-गुँजार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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