लाल उन सनी मनोहर बंसी।
नहिं संभार अजहुँ जुवतिनि बलि, मदन भुवगम डंसी।।
कैसै ल्याऊँ, सँगीतसरोवर, मगन भई गति हंसी।
आपुन ही चलियै, उद्धरियै, मेलि भौह दृढ फंसी।।
मानहु तरुन तमाल स्याम तन, लता मालती ग्रंसी।
'सूरदास' प्रभु सब सुखदाता, लै भुज बीच प्रसंसी।।2115।।