लाल अनमने कतहि होत हो तुम देखौ धौ, देखौ कैसै, कैसै करि तिहि ल्याइहौं।
जलहिं निकट को बारू जैसै, ऐसी कठिन त्रिया की प्रकृतिहिं कर ही कर पघिलाइहौं।।
रिस अरु रुचि हौ समुझि देखि वाकी, वाके मन की ढरनि देखि पुनि भावति बात चलाइहौं।
'सूरदास' प्रभु तुमहिं मिलैहौ, नैकु न ह्वैहो न्यारे, जैसै पानी रंग मिलाइहौं।।2760।।