लालन आजु तुम्हारी प्यारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


लालन आजु तुम्हारी प्यारी, कोटि मनायैहूँ नहिं मानति।
बूझि न परति जानि का बैठी, अति रिस किऐ तब औगुन गानति।।
भरि भरि नैन लेति, नहिं ढारति, अधर फरकि करि भृकुटी तानति।
'सूरदास' प्रभु रसिक-सिरोमनि, आपुहिं चलियै तौ भली वानति।।2572।।

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