ललिता मुख चितवत मुसकाने -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग टोढ़ी


ललिता मुख चितवत मुसकाने।
आपु हँसी पिय मुख अवलोकत, दुहुनि मनहि मन जाने।।
अति आतुर धाई कहँ आई, काहै बदन झुराए।
बूझत है पुनि पुनि नँदनदन, चितवत नैन चुराए।।
तब बोली वह चतुर नागरी, अचरज कथा सुनाउँ।
'सूर' स्याम जौ चलहु तुरत ही, नैननि जाइ दिखाऊँ।।2109।।

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