ललिता प्रेम बिवस भई भारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


ललिता प्रेम बिवस भई भारी।
वह चितवनि, वह मिलनि परस्पर अति सोभा वर नारी।।
इकटक अंग अंग अवलोकति, उत बस भए बिहारी।
वह आतुर छवि लेन देत वै, इक ते इक अधिकारी।।
ललिता संग सखिनि सौ भाषति, देखौ छवि प्रिय प्यारी।
सुनहु 'सूर' ज्यौ होम अगिनि घृत, ताहू तै यह न्यारी।।2120।।

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