लरिकाई की बात चलावति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग टोड़ी


लरिकाई की बात चलावति।
कैसी भई, कहा हम जानैं, नैकहुँ सुधि नहिं आवति।।
कब माखन चोरी करि खायौ, कब बाँधे धौं मैया।
भले बुरे कौ मानऽपमान न, हरषत ही दिन जैया।।
अपनी बात खबरि करि देखहु, न्हात जमुन कैं तीर।
सूर स्याम तब कहत, सबनि के कदम चढ़ाए चीर।।1560।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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