लछन कह्यौ, करवार सम्हारौं।
कुंभकरन अरु इंद्रजीत कौं टूक-टूक करि डारौं।
महाबली रावन जिहिं बोलत, पल मैं सीस सँहारौं।
सब राच्छस रघुबीर-कृपा तैं एकहिं बान निवारौं।
हँसि-हँसि कहत बिभीषन सों प्रभु, महाबली रन भारौ।
सूर सुनत रावन उठि धायौ, क्रोध अनल उर धारौ॥143॥