लग जाती है होड़ परस्पर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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राग परज - ताल कहरवा


लग जाती है होड़ परस्पर प्रेमी-प्रेमास्पद में शुद्ध।
देते सुख-सम्मान परस्पर, करते हठ अविरुद्ध विरुद्ध॥
तुम आरोगो, मैं लूँ पीछे अधरामृतयुत महाप्रसाद।
आता उसमें मुझे विलक्षण परम मधुरतम दिव्य स्वाद॥
मुँह में रख, रस ले, निज रस भर, दो तुम मुझे चबाया पान।
पाऊँ मैं अति मधुर, मनोहर रस उसमें विरहित उपमान॥
तुम बैठो, मैं करूँ तुम्हारा निज हाथों सुन्दर श्रृंगार।
निज कर चुन सुरभित सुमनों का गूँथ तुम्हें पहनाऊँ हार॥
मान करो तुम, तुहें मनाऊँ मैं, कर अति विनीत मनुहार।
तुम पौढ़ो, मैं पग चाँपूँ, मैं करूँ सुशीतल सुखद बयार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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