मीराँबाई की पदावली
राग मलार
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ खुमारी = हलकी थकावट की वह दशा जो किसी नशे के उतरते समय आ जाती है। मेहडा = प्रेम का मेह ( ‘डा’ प्रत्यय ऊनार्थ वाचक है ) सारी = तमाम, सर्वांग। भीजै... हो = प्रेम सर्वांग में व्याप्त हो गया। ( देखो - ‘बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग’ - कबीर)। भरम = भ्रम, भ्रांति, अज्ञान। दीपग = दीपक। जोऊँ = जलाऊँ। अगम = अगम्य स्थान की, ऊँची। इमरित = अमृत के लिए। बलिहारी = बलिहारी जाती हूँ।
विशेष- आत्मदर्शन के पश्चात होने वाले आनंदमय, अनुभव की स्थित का वर्णन प्रेमवर्षा और उसके प्रभाव के रूपक द्वारा व्यक्त किया गया है। कबीर साहब ने इस विचित्र परमात्मा-प्रेम को 'रामरस' भी कहा जाता है। (देखो- 'कहै कबीर फाबी मतिवारी, पीवत रामरस लगी खुमारी'- कबीर)।
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