लंका फिरि गइ राम-दुहाई -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
लंका फिरि गइ राम-दुहाई।
कहति मंदोदरि सुनि पिय रावन, तै कहा कुमति कमाई?
दस मस्तक मेरे बीज भुजा हैं, सो जोजन की खाई।
मेघनाद से पुत्र महाबल, कुंभकरन से भाई।
रहि रहि अबला बोल न बौलै, उनकी करति बड़ाई।
तीनि लोक तैं पकरि मँगाऊँ, वै तपसी दोउ भाई।
तुम्हैं मारि महिरावन मारैं, देहिं बिभीषन राई।
पवन कौ पूत महाबल जोधा, पल मैं लंक जराई।
जनकसुता-पति हैं रघुबर से सँग लछिमन से भाई।
सूददास प्रभु कौ जस प्रगट्यौ, देवनि बंदि छुड़ाई॥140॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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