लंकपति इंद्रजित कौं बलायौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
लंकपति इंद्रजित कौं बलायौ।
कह्यौ तिहिं, जाइ रन भूमि दल साजि कै, कहा भयौ राम कपि जोरि ल्यायौ।
कोपि अंगद कह्यौ, धरौं धर चरन मैं, ताहि जो सकै कोउ उठाई।
तौ बिना जुद्ध कियैं जाहिं रघुवीर फिरि, सुनत यह उठे जोधा रिसाई।
रहे पचिहारि, नहिं टारि कोऊँ सकयौ, उठ्यौ तब आपु रावन खिस्याई।
कह्यौ अंगद, कहा मम चरन कौं गहत, चरन रघुवीर गहि क्यौं न जाई।
सुनत यह सकुचि कियौ गवन निज भवन कौं, बालि-सुतहू तहाँ तैं सिधायौ।
सूर के प्रभू कौं नाइ सिर यौं कह्यौ, अंध दसकंध कौं काल आयौ॥135॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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