रोम रोम ह्वै नैन गए री।
ज्यौ जलधर परबत पर बरषत, बूँद बूँद ह्वै निचटि द्रए री।।
ज्यौ मधुकर रस कमल पान करि, मोतै तजि उन्मत्त भए री।
ज्यौ काँचुरी भुअंगम तजही, फिरि न तकै जु गए सु गए री।।
ऐसी दसा भई री उनकी, स्याम रूप मैं मगन भए री।
'सूरदास' प्रभु-अगनित-सोभा, ना जानौ किहि अंग छए री।।2292।।