रैनि मोहिं जागतहि विहानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


रैनि मोहि जागतहि विहानी, मान कियो मोहन सौ, तातै भई अधिक तन तपति।।
सेज सुगंधित लखि विष लागत, पावकहू तै दाह सखीरी, त्रय बिधि पवन उड़पति।।
एसी कै व्याप्यौ है मनमथ, मेरौई ज्यौ जानै माई, स्याम स्याम कै जपति।
बेगि मिलाउ 'सूर' के प्रभु कौ, भूलिहुँ मान करौं कबहूँ नहिं, मदन बान तैं कँपति।।2089।।

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