रे मन राम सौं करि हेत -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग केदारौ



            

रे मन, राम सौं करि हेत।
हरि-भजन की बारि करि लै, उबरै तेरौ खेत।
मन सुवा, तन पींजरा, तिहिं, माँझ राखै चेत।
काल फिरत बिलार-तनु धरि, अब धरी तिहिं लेत।
सकल विषय-बिकार तजि तू, उतरि सायर-सेत।
सूर भजि गोबिंद के गुन, गुर बताए देत।।311।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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