रे पपइया प्‍यारे कब को वैर चितार्यौ -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहोद्गार

राग सावन


रे पपइया प्‍यारे कब को वैर चितार्यौ ।। टेक ।।
मैं सूती छी अपने भवन में, पिय पिय करत पुकार्यो ।
दाध्‍या ऊपर लूण लगायो, हिवड़ो करवत सार्यों ।
उठि बैठो वा वृच्‍छ की डाली, बोल बोल कंठ सार्यो ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, हरि चरणाँ चित धार्यो ।।83।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पपइया = पपीहा। चितार्यौ = याद किया। ( देखो ‘चुगइ, चितारइ, भी चुगइ, चुगि चुगि चित्तारेह’ - ढोला मारूरा दूहा, अथवा ‘चुगै चितारै भी चुगै, चुगि चुगि चितारै’ - कबीर )। सूती छी = सोई हुई थी। पियपिय = पपीहे की बोली। दाध्या = जले हुए। लूण = नमक। हिवड़े = हृदय पर। करवत = आरा। सार्यो = चला दिया। दाध्या... सार्यो = जले पर नमक लगाकर कलेजे पर आरा चला दिया अर्थात् विरह की पीड़ा बढ़ा कर मर्मान्तक कष्ट पहुँचाया। बैठो = जा बैठा। कंठ सार्यो = अपना गला फाड़ डाला, खूब चिल्लता रहा। चरणाँ = चरणों में। धार्यो = लगाया।
    विशेष - इस पद में मुहावरों के प्रयोग अच्छे हुए हैं।

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