रुकमिनि राधा ऐसे भेटी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


रुकमिनि राधा ऐसे भेटी।
जैसे बहुत दिनन की बिछुरी, एक बाप की बेटी।।
एक सुभाव एक वय दोऊ, दोऊ हरि को प्यारी।
एक प्रान मन एक दुहुनि कौ, तन करि दीसति न्यारी।।
निज मदिर लै गई रुकमिनी, पहने विधि ठानी।
‘सूरदास’ प्रभु तहँ पग धारे, जहँ दोऊ ठकुरानी।। 4291।।

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