राधे तै अति मान करयो।
यह कहि पछितात मनहिं मन, पूरब पाप परयौ।।
पहिली अपनी कथा चलाई, जब तियभेष धरयौ।
तब तिहि रूप अनूप सुमुखि सुनि, त्रिभुवनचित हरयौ।।
मोहे असुर महा मद माते, सुर मुख अमृत भरयौ।
सिव गन सहित समेत महामुनि, को व्रत तै न टरयौ।।
ता तन की छवि निरखि 'सूर' सिव, छत ज्यौ ज्ञान गरयौ।
जिहिं जारयौ जग काम सु माधो, तेरै हठ जात जरयौ।।2814।।