राधा हरि कै गर्व भरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग ललित


राधा हरि कै गर्व भरी।
सखियनि कौ आगम जब जान्यौ, बैठी रही खरी।।
उत ब्रज-नारि-संग जुरि कै वै, हँसति करत परिहास।
चलौ न जाइ देखियै री, वा राधा कौ जु उजास।।
कैसौ बदन, सिंगार कौन बिधि, अंग दसा भई कैसी।
'सूर' स्याम सँग निसि रस कीन्हे, निधरक ह्वैहै बैसी।।2049।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः