राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 104

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीठाकुरजी क शयन-झाँकी

(सेज सौं उठि बृंदाबन में पधारनौ) (पटापेक्ष)
कामदेव- अहा! मैंने ब्रह्मा कूँ जीत्यौ, महादेवजी कूँ जीत्यौ, चंद्रमा कूँ जीत्यौ, इंद्र कूँ जीत्यौ, और हू सब देवतान कूँ जीत्यौ, परंतु एक विष्णु रहे हैं- काहू समय उनकूँ हूँ जीति लऊँगौ।
(नारदजी कौ आनौ)
नारदजी (स्वगत) है? सामने सौं कामदेव आय रह्यौ है, ये मोते लरिवे की कहूँगौ, सो मोमें तो लरिवे की सामर्थ्य है नहीं, यासौं दृष्टि बचाय कै निकरि चलूँ।
(श्लोक)

खलानां कण्टकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया।
उपानन्मुखभंगो वा दूरतो वा विसर्जनम्।

अर्थ- खल और काँटे कौ तौ यही उपाय है कि अपने में सामर्थ्य होय तौ वाको मुख भंजन कर दे, नहीं तौ वासौं दृष्टि बचाय कैं निकसि जाय।
कामदेव- क्यौं नारदजी! न राम-राम न स्याम-स्याम, वैसैं ही बचि कैं चले जाय रहे हौ? देखौ, मेरी भुजान में खुजार चलि रही है। सो यातै आप लरौ और नहीं लरि सकौ तौ कोई लरिबे वारौ बताऔ।
नारदजी- अहा हा, मदनराज! मोमें तौ इतनी सामर्थ्य नहीं सो युद्ध करूँ परंतु आपकी भुजान की खुजार मिटायबे को उपाय अवस्य बताय सकूँ हूँ देखौ, बृंदाबन में श्रीकृष्णचंद्र विराजै हैं, सो वे आपकी इच्छा कूँ अवस्य पूर्ण करैंगे। (नारदजी कौ पधारनौ, कामदेव कौ ठाकुरजी के पास जानौ तथा दंडवत करनी)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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