राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रवर्तक श्री हितहरिवंश जी (जन्म संवत 1559 विक्रमी) थे। उनकी भक्ति स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के प्रति न होकर[1] उनकी कल्पित अर्द्धांगनी श्रीराधा के प्रति समर्पित हो गई, जिसे उन्होंने 'श्रृंगार की देवी' के रूप में प्रतिष्ठित किया था।
- श्री हितहरिवंश गुसांई अपनी भक्ति की रीति तत्काल जान सकते हैं, जिनके अनुसार श्रीराधा के चरण आराधना के सर्वोच्च आस्पद हैं।
- वे सुदृढ़ उपासक भक्त हैं, जो कुंज केलिक्रीड़ा में रत दम्पति की खवासी करते हैं।
- मन्दिर के भोग प्राप्त करने में जो गर्व और प्रसिद्धि के अधिकारी है। जो एकमेव ऐसे चाकर हैं, जो कदापि विधि निषेध नहीं करते, एक अप्रतिम उत्कंठित व्रतधारी हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गौण रूप को छोड़कर
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