राखि लेहु अब नंदकिसोर।
तुम जो इंद्र को मेटी पूजा, बरसत है अति जोर।।
ब्रजवासी तुम तन चितवत हैं, ज्यौं करि चंद चकोर।
जनि जिय डरौ, नैन जनि मूँदौ, धरिहौं नख को कोर।
करि अभिमान इंद्र भरि लायौ, घटा घन घोर।
सूर स्याम कह्यौ तुम कौं राखौं बूंद न आवै छोर।।865।।