रहु रहु रे बिहंग बनवासी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


रहु रहु रे विहंग वनवासी।
तेरे बोलत रजनी बाढ़ति, स्रवननि सुनत नीद हू नासी।।
कहा कहौ कोउ मानत नाही, इक चंदन अरु चंद तरासी।
'सूरदास' प्रभु जौ न मिलैंगे, तौ अब लैहौ करवट कासी।। 3331।।

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