रहि री मानिनि मान न कीजै।
यह जोबन अँजुरी कौ जल है, ज्यौं गुपाल माँगे त्यौ दीजै।।
छिनु छिनु घटति, बढ़ति नहि रजनी, ज्यौ ज्यौ कला चंद्र की छीजै।
पूरब पुन्य सुकृत फल तेरौ, काहै न रूप नैन भरि पीजै।।
सौह करति तेरे पाइनि की, ऐसी जियनि दसौ दिन जीजै।
'सूर' सु जीवन सुफल जगत कौ, बैरी बाँधि बिबस करि लीजै।।2598।।