रसिक रसिकई जानि परी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


रसिक रसिकई जानि परी।
नैननि तै अब न्यारै हूजै, तबही तै अति रिसनि मरी।।
तुम जोवन अरु सो नवजोवनि, एते पर सब गुननि भरी।
लाज नही मेरै गृह आवत, जाहु जाहु करि तिय झहरी।।
अंजन अधर, कपोलनि बदन, पीक पलक, छबि देखि डरी।
'सूर' स्याम रतिचिह्न दिखावन, मेरै आए भलै हरी।।2541।।

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