रमइया बिनि यौ जिवड़ौ दुख पावै -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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संसार
राग विहागरा





रमइया बिनि यौ जिवड़ौ दुख पावै ।
कहो कुण धीर बँधावै ।। टेक ।।
यौ संसार कुबधि को भांडो, साध सँगति नहिं भावै ।
राम नाम की निंद्या ठाणै, करम ही करम कुमावै ।
राम नाम बिनि मुकुति न पावै, फिर चौरासी जावै ।
साध संगत में कबहुं न जावै, मुरखि जनम गुमावै ।
जन मीरां सतगुर के सरणैं, जीव परमपद पावै ।।160।।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यौ = यह। जिवड़ो = जीव। कुण = कौन। कुबधि = कुबुद्धि, दुर्मति। भाँडो = बर्त्तन, खानि। ( देखो - ‘दुनियां भांडा दुख का, भारी मुहाँमुह भूष’ - कबीर )। निद्या ठाणै = निन्दा करता है। कुमावे = कमाता व इकट्ठा करता जाता है। फिर = फिर कर, लौट कर, बारबार। चौरासी = चौरासी लाख योनियों में। सरणैं = शरण में। परम पद = परमात्मा का पद वा स्थान, अगम देश।

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