रथ पर देखि हरिबलराम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


रथ पर देखि हरिबलराम।
निरखि कोमलचारु मूरति, हृदय मुक्ता दाम।।
मुकुट कुडल पीत पट छवि, अनुज भ्राता स्याम।
रोहिनीसुत एक कुंडल, गौर तनु सुखधाम।।
जननि कैसै धरयौ धीरज, कहतिं सब पुरबाम।
बोलि पठयौ कस इनकौ, करै धौ कह काम।।
जोरि कर विधि सौ मनावतिं, असिष दै दै नाम।
न्हात बार न खसै इनकौ, कुसल पहुँचै धाम।।
कस कौ निरबस ह्वै है, करत इन पर ताम।
'सूर' प्रभु नँदसुवन दोऊ हंसवाल उपाम।।3029।।

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