रति-संग्राम-वीर-रस माते -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


रति-संग्राम-वीर-रस माते।
है हरि सूरसिरोमनि अबहूँ, नहिंन सँभारत ताते।।
आनहिं बरन भए दोउ लोचन, अपने सहज बिनाते।
मानहुँ भीर परी जोधनि की, भए क्रोध अति राते।।
बैठि जात, अलसात उनीदे, क्रम क्रम उठत तहाँ ते।
परिमललुब्ध मधुप जहँ बैठत, उडि न सकत तिहिं ठाँ ते।।
मन मूरछा, कटाच्छनाटसल, कढि न सकत हियरा ते।
मनहुँ मदन के है सर पाए फोक बाहिरी घाँते।।
डगमगात घूमत जनु घायल, सोभा सुभट कला ते।
'सूरदास' प्रभु रतिरन जीते, अब सकात धौ काते।।2684।।

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