रजनी-मुख बन तैं बने आवत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी



रजनी-मुख बन तैं बने आवत, भावति मंद गयंद की लटकनि।
बालक-वृंद बिनोद-हँसावत, करतल लकुट धेनु की हटकनि।
बिगसित गोपी मनौ कुमुद सर, रूप-सुधा लोचन-पुट घटकनि।
पूरन कला उदित मनु उड़पति, तिहिं छन बिरह-तिमिर की झटकनि।
लज्जित मनमथ निरखि बिमल छबि, रसिक रंग मौंहनि की मटकनि।
मोहनलाल, छबीलौ गिरिधर, सूरदास बलि नागर नटकनि।।618।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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