रघुकुल प्रगटे हैं रघुबीर -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


  
रघुकुल प्रगटे हैं रघुबीर।
देस-देस तैं टीकौ आयौ, रतन-कनक-मनि-हीर।
घर-घर मंगल होत बधाई, अति पुरवासिनि भोर।
आनंद मगन भए सब डोलत, कछू न सोघ सरीर।
मागध-बंदी-सूत लुटाए, गो-गयंद-हरचीर।
देत असीस सूर, चिरजीवौ रामचंद्र रनधीर।।18।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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