रंगभरी रंगभरी रंग सूं भरीरी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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रँगभरी रँगभरी रँग सूँ भरीरी,
होली आई प्यारी रँग सूँ भरी, री ।।। टेक ।।
उड़त गुलाल लाल भये बादल, पिचकारिन की लगी झरी, री ।
चोवा चंदन और अरगजा, केसर गागर भरी धरी, री ।
मीराँ कहे प्रभु गिरधर नागर, चेरी होय पायन में परी, री ।।146।।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. झरी = झड़ी, छोटी छोटी बूँदों की लगातार वर्षा (देखो - ‘कुंकुम अगर अरगजा छिरकहि भरहि गुलाल अबीर। नभ प्रसून झरि पुरी कोलाहल भइ मन भावति भीर’ - तुलसीदास )।

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