येई हैं कुलदेव हमारे।
काहूँ नहीं और मैं जानति, व्रज गोधन रखवारे।।
दीपमालिका के दिन पाँचक गोपिनि कहौ बुलाई।
बलि सामग्री करैं चँड़ाई, अबहीं कहौ सुनाई।।
लई बुलाइ महरि महरानी, सुनतहिं आई धाई।
नंद घरनि तब कहति सखिन सौं, कत हौ रही भुलाई।।
भूली कहा कहौ सो हमसौं, कहति कहा डरपाई।
सूरदास सुरपति की पूजा, तुम सबहिनि बिसराई ।।812।।