युधिष्ठिर का कुन्ती एवं कौरवों के लिए संदेश

महाभारत उद्योग पर्व में भगवद्यान पर्व के अंतर्गत 83वें अध्याय में 'युधिष्ठिर का कुन्ती एवं कौरवों के लिए संदेश' का वर्णन है, जो इस प्रकार है-[1]

युधिष्ठिर द्वारा कुन्ती एवं कौरवों के लिये संदेश

श्रीकृष्ण द्वारा कौरवों से संधि के विषय में वर्तालाप करने के लिये हस्तिनापुर प्रस्थान कर रहे हैं तो उन्हें पहुँचाने के लिए कुंतीपुत्र युधिष्ठिर भी उनके पीछे-पीछे चले दिये, साथ ही भीमसेन, अर्जुन, माद्री के दोनों पुत्र पांडुकुमार नकुल-सहदेव, पराक्रमी चेकितान, चेदिराज़ धृष्टकेतु, द्रुपद, काशिराज,महारथी शिखंडी, धृष्टद्युम्न, पुत्रों और केकयों सहित राजा विराट- ये सभी क्षत्रिय अभीष्ट कार्य की सिद्धि एवं शिष्टाचार का पालन करने के लिए उनके पीछे गए। इस प्रकार गोविंद के पीछे कुछ दूर जाकर तेजस्वी धर्मराज युधिष्ठिर ने राजाओं के समीप उनसे कुछ कहने का विचार किया। जो कभी कामना से, भय से, लोभ से अथवा अन्य किसी प्रयोजन के कारण भी अन्याय का अनुसरण नहीं कर सकते, जिनकी बुद्धि स्थिर है, जो लोभरहित, धर्मज्ञ, धैर्यवान, विद्वान तथा सम्पूर्ण भूतों के भीतर विराजमान हैं, वे भगवान केशव देवताओं के भी देवता, सनातन परमेश्वर तथा समस्त प्राणियों के ईश्वर हैं। उन्हीं सर्वगुणसंपन्न श्रीवत्सचिह्न से विभूषित भगवान श्रीकृष्ण को हृदय से लगाकर कुंतीकुमार युधिष्ठिर ने निम्नांकित संदेश देना आरंभ किया।

युधिष्ठिर बोले- शत्रुओं का संहार करने वाले जनार्दन। अबला होकर भी जिसने बाल्यकाल से ही हमें पाल-पोसकर बड़ा किया है, उपवास और तपस्या में संलग्न रहना जिसका स्वभाव बन गया है, जो सदा कल्याण साधन में ही लगी रहती है, देवताओं और अतिथियों की पूजा में तथा गुरुजनों की सेवा सुश्रुशा में जिसका अटूट अनुराग है, जो पुत्रवत्सला एवं पुत्रों को प्यार करने वाली है, जिसके प्रति हम पाँच भाइयों का अत्यंत प्रेम है, जिसने दुर्योधन के भय से हमारी रक्षा की है, जैसे नौका मनुष्य को समुद्र में डूबने से बचाती है, उसी प्रकार जिसने मृत्यु के महान संकट से हमारा उद्धार किया है और माधव। जिसने हम लोगों के कारण सदा दुःख ही भोगे हैं, उस दुःख न भोगने योग्य हमारी माता कुंती से मिलकर आप उसका कुशल समाचार अवश्य पूछें।[1] आप हम पांडवों का समाचार बताते हुए हमारी माँ कुंती से मिलियेगा और प्रणाम करके पुत्र शोक से पीड़ित हुई उस देवी को बहुत-बहुत आश्वासन दीजिए। शत्रुदमन! उसने विवाह करने से लेकर ही अपने श्वसुर के घर में नाना प्रकार के दुःख और कष्ट ही देखे तथा अनुभव किए हैं और इस समय भी वह वहाँ कष्ट ही भोगती है। शत्रुनाशक श्रीकृष्ण! क्या कभी वह समय भी आयेगा, जब हमारे सब दुःख दूर हो जाएँगे और हम लोग दुःख में पड़ी हुई अपनी माता कुंती को सुख दे सकेंगे? जब हम वन को जा रहे थे, उस समय पुत्रस्नेह से व्याकुल हो वह कातरभाव से रोती हुई हमारे पीछे-पीछे दौड़ी आ रही थी, परंतु हम लोग उसे वहीं छोड़कर वन में चले गए। आनर्तदेश के सम्मानित वीर केशव! यह निश्चित नहीं है कि मनुष्य दुःखों से घबराकर मर ही जाता हो। इसलिए कदाचित वह जीवित हो, तो भी पुत्रों की चिंता से अत्यंत पीड़ित ही होगी। प्रभो! मधुसूदन श्रीकृष्ण! आप माता को प्रणाम करके मेरे कथनानुसार धृतराष्ट्र, दुर्योधन, अन्यान्य वयोवृद्ध नरेश, भीष्म, द्रोण, कृप, महाराज बाह्लिक, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, सोमदत्त, समस्त भरतवंशी क्षत्रियवृंद तथा कौरवों के मंत्र की रक्षा करने वाले, मर्मवेत्ता, अगाधबुद्धि एवं महाज्ञानी विदुर के पास जाकर इन सबको हृदय से लगाइयेगा। राजाओं के बीच में भगवान श्रीकृष्ण से ऐसा कहकर राजा युधिष्ठिर उनकी परिक्रमा करके आज्ञा ले लौट पड़े।

अर्जुन का संदेश

परंतु अर्जुन ने पीछे-पीछे जाते हुए ही शत्रुवीरों का संहार करने वाले अपराजित नरश्रेष्ठ अपने सखा दशार्हकुलनंदन श्रीकृष्ण से कहा- गोविंद! पहले जब हम लोगों में गुप्त मंत्रणा हुई थी, उस समय एक निश्चित सिद्धान्त पर पहुँचकर हमने आधा राज्य लेकर ही संधि करने का निश्चय किया था, इस बात को सभी राजा जानते हैं। महाबाहो! यदि दुर्योधन लोभ छोड़कर अनादर न करके सत्कारपूर्वक हमें आधा राज्य लौटा दे तो मेरा प्रिय कार्य सम्पन्न हो जाये तथा समस्त कौरव महान भय से छुटकारा पा जाएँ। जनार्दन! यदि समुचित उपाय को न जानने वाला धृतराष्ट्र पुत्र इसके विरुद्ध आचरण करेगा तो मैं निश्चय ही उसके पक्ष में आए हुए समस्त क्षत्रियों का संहार कर डालूँगा।'

वैशम्पायन जी कहते हैं-जनमेजय पांडुनंदन अर्जुन के ऐसा कहने पर पांडव भीमसेन को बड़ा हर्ष हुआ। वे क्रोधवश बारंबार काँपने लगे। काँपते-काँपते ही कुंतीकुमार भीमसेन बड़े ज़ोर-ज़ोर से सिंहनाद करने लगे। अर्जुन की पूर्वोक्त बातें सुनकर उनका हृदय अत्यंत हर्ष और उत्साह से भर गया था। उनका वह सिंहनाद सुनकर समस्त धनुर्धर भय के मारे थरथर कांपने लगे। उनके सभी वाहनों ने मल-मूत्र कर दिये। इस प्रकार श्रीकृष्ण से वार्तालाप करके उन्हें अपना निश्चय बता गले मिलकर अर्जुन श्रीकृष्ण से आज्ञा ले लौट आए। उन सब राजाओं के लौट जाने पर शैव्य और सुग्रीव आदि से युक्त रथ पर चलने वाले जनार्दन बड़े हर्ष के साथ तीव्र गति से आगे बढ़े।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 83 श्लोक 18-40

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दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना | पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना | पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर | पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना | धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति

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भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन | कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद | भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन | पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा | पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन | भीष्म का शिखण्डी और पांडवों का वध न करने का कथन

अम्बोपाख्यानपर्व
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