युधिष्ठिर का अपशकुन देखना एवं यादवों के विनाश का समाचार सुनना

महाभारत मौसल पर्व के अंतर्गत पहले अध्याय में युधिष्ठिर का यादवों के विनाश का समाचार सुनकर अपशकुन देखने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]-

युधिष्ठिर का अपशकुन देखना

अन्तर्यामी नारायण स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण, (उन के नित्य सखा) नर स्वरूपा नरश्रेष्ठ अर्जुन, (उनकी लीला प्रकट करने वाली) भगवती सरस्वती और (उन लीलाओं का संकलन करने वाले) महर्षि वेदव्यास को नमस्कार करके जय (महाभारत) का पाठ करना चाहिये।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! महाभारत युद्ध के पश्चात जब छत्तीसवाँ वर्ष प्रारम्भ हुआ तब कौरवनन्दन राजा युधिष्ठिर को कई तरह के अपशकुन दिखायी देने लगे। बिजली की गड़गड़ाहट के साथ बालू और कंकड़ बरसाने वाली प्रचण्ड आँधी चलने लगी। पक्षी दाहिनी ओर मण्डल बनाकर उड़ते दिखायी देने लगे। बड़ी-बड़ी नदियाँ बालू के भीतर छिपकर बहने लगीं। दिशाएँ कुहरे से आच्छादित हो गयीं। आकाश से पृथ्वी पर अंगार बरसाने वाली उल्काएँ गिरने लगीं। राजन! सूर्य मण्डल धूल से आच्छन्न हो गया था। उदय काल में सूर्य तेजोहीन प्रतीत होते थे और उनका मण्डल प्रतिदिन अनेक कबन्धों (बिना सिर के धड़ों) से युक्त दिखायी देता था। चन्द्रमा और सूर्य दोनों के चारों ओर भयानक घेरे दृष्टिगोचर होते थे। उन घेरों में तीन रंग प्रतीत होते थे। उनका किनारे का भाग काला एवं रूखा होता था। बीच में भस्म के समान धूसर रंग दीखता था और भीतरी किनारे की कान्ति अरुणवर्ण की दृष्टिगोचर होती थी। राजन! ये तथा और भी बहुत-से भयसूचक उत्पात दिखायी देने लगे, जो हृदय को उद्विग्न कर देने वाले थे।

पांडवों का यादवों के विनाश का समाचार मिलना

इसके थोड़े ही दिनों बाद कुरुराज युधिष्ठिर ने यह समाचार सुना कि मूसल को निमित्त बनाकर आपस में महान युद्ध हुआ है; जिसमें समस्त वृष्णिवंशियों का संहार हो गया। केवल भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी ही उस विनाश से बचे हुए हैं। यह सब सुनकर पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर ने अपने समस्त भाइयों को बुलाया और पूछा- ‘अब हमें क्या करना चाहिये? ब्राह्मणों के शाप बल से विवश हो आपस में लड़-भिड़कर सारे वृष्णिवंशी विनष्ट हो गये। यह बात सुनकर पाण्डवों को बड़ी वेदना हुई। भगवान श्रीकृष्ण का वध तो समुद्र को सोख लेने के समान असम्भव था; अतः उन वीरों ने भगवान श्रीकृष्ण के विनाश की बात पर विश्वास नहीं किया। इस मौसल काण्ड की बात को लेकर सारे पाण्डव दुःख-शोक में डूब गये। उनके मन में विषाद छा गया और वे हताश हो मन मारकर बैठ गये।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत मौसल पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-16

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