यहै मंत्र अक्रूर सौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल


यहै मंत्र अक्रूर सौ, नृप रैनि बिचारि।
प्रात नंदसुत मारिहौ, यह कह्यौ प्रचारि।।
करि बिचारि जुग जाम लौ मदिरहि पधारे।
कह्यौ, जाहु अकूर सौ, भए आलस भारे।।
तुरत जाइ पलिका परयौ, पलकनि झपकानौ।
स्याम राम सुपने खरे, तहँ देखि डरानौ।।
अति कठोर दोउ काल से, भरम्यौ अति झझक्यौ।
जागि परयौ तहँ कोउ नही, जियही जिय ससक्यौ।।
चौकि परयौ सँग नारि के, रानी सब जागी।
उठी सबै अकुलाइ कै, तब बूझन लागी।।
महाराज झझके कहा, सपने कह ससके।
'सूर' अतिहिं व्याकुल भये, धर धर उर धरके।।2933।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः