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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
सप्तम अध्याय
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः।।30।।
जो पुरुष अधिभूत, अधिदैव तथा अधियज्ञ के सहित मुझे जानते हैं, मुझमें समाहित चित्तवाले वे पुरुष अन्तकाल में भी मुझको ही जानते हैं, मुझमें ही स्थित रहते हैं और सदैव मुझे प्राप्त करते हैं। छब्बीसवें-सत्ताइसवें श्लोक में उन्होंने कहा-मुझे कोई नहंी जानता; क्योंकि वे मोहग्रस्त हैं। किन्तु जो उस मोह से छूटने के लिये प्रयत्नशील हैं, वे (1) सम्पूर्ण ब्रह्म, (2) सम्पूर्ण (3) सम्पूर्ण कर्म, (4) सम्पूर्ण अधिभूत (5) सम्पूर्ण अधिदैव और (6) सम्पूर्ण अधियज्ञ सहित मुझको जानते हैं अर्थात् इन सबका परिणाम मैं (सद्गुरु) हूँ। वही मुझे जानता है, ऐसा नहीं कि कोई नहीं जानता।
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