विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायवेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन। अर्जुन! मैं अतीत वर्तमान और भविष्य में होनेवाले सम्पूर्ण प्राणियों को जानता हूँ; परन्तु मुझे कोई नहीं जानता। क्यों नहीं जान पाता?
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत। भरतवंशी अर्जुन! इच्छा और द्वेष अर्थात् राग-द्वेषादि द्वन्द्व के मोह से संसार के सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त मोह को प्राप्त हो रहे हैं इसलिये मुझे नहीं जान पाते। तो क्या कोई जानेगा ही नहीं? योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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