विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायदैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। यह त्रिगुणमयी मेरी अद्भुत माया दुरस्त है; किन्तु जो पुरुष मुझे ही निरन्तर भजते हैं, वे इस माया का पार पा जाते हैं। यह माया है तो दैवी, परन्तु अगरबत्ती जलाकर इसकी पूजा न करने लगें। इससे पार पाना है।
|
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज