विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायसृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय के प्रश्न को मानव समाज ने कौतूहल से देखा है। विश्व के अनेक शास्त्रों में इसे किसी-न-किसी तरह समझाने का प्रयास चला आ रहा है। कोई कहता है कि प्रलय में संसार डूब जाता है, तो किसी अनुसार सूर्य इतना नीचे आ जाता है कि पृथ्वी जल जाती है। कोई सी को कयामत कहता है कि इसी दिन सबका फैसला सुनाया जाता है, तो कोई नित्य प्रलय, नैमित्तिक प्रलय की गणना में व्यस्त है। किन्तु योगेश्वर श्रीकृष्ण के अनुसार प्रकृति अनादि है। परिवर्तन होते रहे हैं, किन्तु यह नष्ट कभी नहीं हुई। भारतीय धर्मग्रन्थों के अनुसार मनु ने प्रलय देखा था। इसके साथ ग्याहर ऋषियों ने मत्स्य की सींग में नाव बाँधकर हिमालय के एक उत्तुंग शिखर की शरण ली थी। लीलाकार श्रीकृष्ण के उपदेशों एवं जीवन से सम्बन्धित उनके समकालीन शास्त्र भागवत् में मृकण्डु, मुनि के पत्र मार्कण्डेय जी द्वारा मुनि के पुत्र मार्कण्डेय जी द्वारा प्रलय आँखों देखा हाल प्रस्तुत है। वे हिमालय के उत्तर में पुष्पभद्रा नदी के किनारे रहते थे।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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