विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायभूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अर्जुन! भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश तथा मन, बुद्धि और अहंकार-ऐसे यह आठ प्रकार भेदोंवाली मेरी प्रकृति है। यह अष्टधा मूल प्रकृति है। अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि में पराम्। ‘इयम्’ अर्थात् यह आठ प्रकारोंवाली तो मेरी अपरा प्रकृति है अर्थात् जड़ प्रकृति है। महाबाहु अर्जुन! इससे दूसरी को जीवरूप ‘परा’ अर्थात् चेतन प्रकृति जान, जिससे सम्पूर्ण जगत् धारण किया हुआ है। वह है जीवात्मा। जीवात्मा भी प्रकृति के सम्बन्ध में रहने के कारण प्रकृति ही है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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