यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 344

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

षष्ठम अध्याय

उन्होंने प्राप्तिवाले योगी की रहनी बतायी। ‘यज्ञस्थली’, बैठने का आसन तथा बैठने के तरीके पर उन्होंने कहा कि स्थान एकान्त और स्वच्छ हो। वस्त्र, मृगचर्म अथवा कुश की चटाई में से कोई एक आसन हो। कर्म के अनुरूप चेष्टा, युक्ताहार-विहार, सोने-जागने के संयम पर उन्होंने बल दिया। योगी के निरुद्ध चित्त की उपमा उन्होंने वायुरहित स्थान में दीपक की अकम्पित लौ से दी। और इस प्रकार उस निरुद्ध चित्त का भी जब विलय हो जाता है, उस समय वह योग की पराकाष्ठा अनन्त आनन्द को प्राप्त होता है। संसार के संयोग-वियोग से रहित अनन्त सुख का नाम योग है। योग का अर्थ है उससे मिलन। जो योगी इसमें प्रवेश पा जाता है, वह सम्पूर्ण भूतों में समदृष्टिवाला हो जाता है। जैसे अपनी आत्मा वैसे ही सबकी आत्मा को देखता है। वह परम पराकाष्ठा की शान्ति को प्राप्त होता है। अतः योग आवश्यक है। मन जहाँ-जहाँ जाय, वहाँ-वहाँ से घसीटकर बारम्बार इसका निरोध करना चाहिये। श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया कि मन बड़ी कठिनाई से वश में होनेवाला है, लेकिन होता है। यह अभ्यास और वैराग्य द्वारा वश में हो जाता है। शिथिल प्रयत्नवाला व्यक्ति भी अनेक जन्म के अभ्यास से वहीं पहुँच जाता है, जिसका नाम परमगति अथवा परमधाम है। तपस्वियों, ज्ञानमार्गियों तथा केवल कर्मियों से भी योगी श्रेष्ठ है, इसलिये अर्जुन! तू योगी बन। समर्पण के साथ अन्तर्मन से योग का आचरण कर। प्रस्तुत अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने प्रमुख रूप से योग की प्राप्ति के लिये अभ्यास पर बल दिया है। अतः


ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्यविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे ‘अभ्यासयोगो’ नाम षष्ठोऽध्यायः।।6।।


इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में ‘अभ्यास योग’ नामक छठा अध्याय पूर्ण होता है।

इति श्रीमत्परमहंसपरमानन्दस्य शिष्य स्वामीअड़गड़ानन्दकृते श्रीमद्भगवद्गीतायाः ‘यथार्थगीता’ भाष्ये ‘अभ्यासयोगा’ नाम षष्ठोेऽध्यायः।।6।।


इस प्रकार श्रीमत् परमहंस परमानन्दजी के शिष्य स्वामी अड़गड़ानन्दकृत ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ में ‘अभ्यासयोग’ नामक छठा अध्याय पूर्ण होता है।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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