विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायश्रीभगवानुवाच पार्थिव शरीर को ही रथ बनाकर लक्ष्य की ओर अग्रसर अर्जुन! उस पुरुष का न तो इस लोक में और परलोक में ही नाश होता है; क्योंकि हे तात! उस परमकल्याणकारी नियत कर्म को करनेवाला दुर्गति को प्राप्त नहीं होता। उसका होता क्या है?-
|
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज