विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायआत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन। हे अर्जुन! जो योगी अपने ही समान सम्पूर्ण भूतों में सम देखता है, अपने-जैसा देखता है, सुख और दुःख भी सबमें समान देखता है, वह योगी (जिसका भेदभाव समाप्त हो गया है) परमश्रेष्ठ माना गया है। प्रश्न पूरा हुआ। इस पर अर्जुन ने प्रश्न किया-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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