विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायशुचै देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः। शुद्ध भूमि में कुश, मृगछाल अथवा इससे भी उत्तरोत्तर (रेशमी, ऊनी वस्त्र, तख्त इत्यादि कुछ भी) बिछाकर अपने आसन को न अति ऊँचा, न नीचा, स्थिर स्थापित करे। शुद्ध भूमि का तात्पर्य उसे झाड़ने-बहारने, सफाई करने से है। जमीन पर कुछ बिछा लेना चाहिये-चाहे मृगछाल हो या चटाई अथवा काई भी वस्त्र, तख्त जो भी उपलब्ध हो। आसन हिलने-डुलनेवाला न हो। न जमीन से बहुत ऊँचा हो और न एकदम नीचा।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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