विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायकुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। कुल के नाश होने से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं। अर्जुन कुलधर्म, कुलाचार को ही सनातन-धर्म समझ रहा था। धर्म के नाश होने पर सम्पूर्ण कुल को पाप भी बहुत दबा लेता है। अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः। हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं। हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित होने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है। अर्जुन की मान्यता थी कि कुल की स्त्रियों के दूषित होने से वर्णसंकर होता है, किन्तु श्रीकृष्ण ने इसका खण्डन करते हुए आगे बताया कि मैं अथवा स्वरूप में स्थित महापुरुष यदि आराधना-क्रम में भ्रम उत्पन्न कर दें, तब वर्णसंकर होता है। वर्णसंकर के दोषों पर अर्जुन प्रकाश डालता है- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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