विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः। जिसका अन्तःकरण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति अचल, स्थिर और विकाररहित है, जिसने इन्द्रियों को विशेष रूप से जीत लिया है, जिसकी दृष्टि में मिट्टी और सुवर्ण एक समान हैं-ऐसा योगी ‘युक्त’ कहा जाता है। ‘युक्त’ का अर्थ है योग से संयुक्त। यह योग की पराकाष्ठा है, जिसे योगेश्वर पाँचवें अध्याय में श्लोक सात में बारह तक चित्रित कर आये हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज