यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 297

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

षष्ठम अध्याय

ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकान्चनः।।8।।

जिसका अन्तःकरण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति अचल, स्थिर और विकाररहित है, जिसने इन्द्रियों को विशेष रूप से जीत लिया है, जिसकी दृष्टि में मिट्टी और सुवर्ण एक समान हैं-ऐसा योगी ‘युक्त’ कहा जाता है। ‘युक्त’ का अर्थ है योग से संयुक्त। यह योग की पराकाष्ठा है, जिसे योगेश्वर पाँचवें अध्याय में श्लोक सात में बारह तक चित्रित कर आये हैं।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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