विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायउद्वरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। अर्जुन! मनुष्य को चाहिये कि अपने द्वारा अपना उद्वार करे, अपने आत्मा को अधोगति में न पहुँचावे; क्योंकि यह जीवात्मा स्वयं ही अपना मित्र है और यही अपना शत्रु भी है। कब यह शत्रु होता है और कब मित्र? इस पर कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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